“2024-25 में 11 लाख बच्चे शिक्षा से वंचित: इंडियन एजुकेशन मंत्रालय की चौंकाने वाली रिपोर्ट”
2024-25 में 11 लाख से अधिक बच्चे स्कूल से बाहर: इंडियन एजुकेशन मंत्रालय की रिपोर्ट
नई दिल्ली: 2024-25 शैक्षणिक वर्ष में पूरे भारत में 11 लाख से अधिक बच्चे ‘स्कूल से बाहर’ (Out of School – OoSC) पाए गए हैं। यह जानकारी केंद्रीय इंडियन एजुकेशन मंत्रालय ने लोकसभा में तेलुगु देशम पार्टी (TDP) के सांसद श्रीभरत मथुकुमिली द्वारा पूछे गए सवाल के जवाब में दी।
सांसद ने प्राथमिक, माध्यमिक और उच्च माध्यमिक स्तर पर गैर-नामांकन (Non-enrollment) के आंकड़ों के बारे में सवाल किया था। जवाब में केंद्रीय शिक्षा राज्य मंत्री जयंत चौधरी ने बताया कि उत्तर प्रदेश, झारखंड और असम जैसे राज्यों में स्कूल से बाहर बच्चों की संख्या अधिक पाई गई है।
स्कूल से बाहर बच्चों का राज्यवार आंकड़ा
रिपोर्ट के अनुसार, उत्तर प्रदेश ने सबसे अधिक 7,84,228 बच्चे स्कूल से बाहर पाए गए, जबकि झारखंड में यह संख्या 65,070 और असम में 63,848 थी।
इसके विपरीत, कुछ राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में स्कूल से बाहर बच्चों की संख्या बेहद कम रही। अंडमान और निकोबार द्वीप समूह ने केवल 2 बच्चे, पुडुचेरी ने 4 और सिक्किम ने 74 बच्चे रिपोर्ट किए। वहीं, लद्दाख और लक्षद्वीप ने कोई भी स्कूल से बाहर बच्चा रिपोर्ट नहीं किया।
पिछले आंकड़े और शिक्षा की स्थिति
शिक्षा मंत्रालय के यूनिफाइड डिस्ट्रिक्ट इंफॉर्मेशन सिस्टम फॉर एजुकेशन (UDISE) पोर्टल के अनुसार, 2021-22 के शैक्षणिक वर्ष में कुल 26,52,35,830 बच्चों ने स्कूलों में नामांकन किया था। इनमें से 12,73,35,252 लड़कियां और 13,79,00,578 लड़के थे।
2021-22 में, भारत में कुल 14,89,115 स्कूल और 10,55,283 शिक्षक थे। हालांकि, इतने बड़े पैमाने पर शिक्षा व्यवस्था के बावजूद, स्कूल से बाहर बच्चों की समस्या चिंता का विषय बनी हुई है।
स्कूल छोड़ने की समस्या के कारण ओर इंडियन एजुकेशन सिस्टम
विशेषज्ञों का मानना है कि स्कूल से बाहर बच्चों की संख्या बढ़ने के पीछे कई प्रमुख कारण हो सकते हैं:
- आर्थिक समस्याएं: गरीबी के कारण कई माता-पिता अपने बच्चों को स्कूल भेजने में सक्षम नहीं होते हैं।
- बाल श्रम: गरीब परिवारों के बच्चे स्कूल छोड़कर काम में लग जाते हैं, ताकि वे परिवार की आर्थिक मदद कर सकें।
- लड़कों और लड़कियों के बीच असमानता: कुछ क्षेत्रों में, विशेष रूप से ग्रामीण इलाकों में, लड़कियों को प्राथमिक शिक्षा से वंचित रखा जाता है।
- भौगोलिक समस्याएं: दूर-दराज और पहाड़ी क्षेत्रों में स्कूलों की अनुपलब्धता एक बड़ी समस्या है।
- महामारी का प्रभाव: कोविड-19 महामारी के दौरान, कई बच्चों ने स्कूल छोड़ दिया और उनमें से कुछ ने अब तक पढ़ाई फिर से शुरू नहीं की।
राज्य सरकारों और केंद्र सरकार की भूमिका
हालांकि, सरकारें स्कूल छोड़ने वाले बच्चों की समस्या को कम करने के लिए कई कदम उठा रही हैं।
- सरकारी योजनाएं: जैसे कि सर्व शिक्षा अभियान और आरटीई (शिक्षा का अधिकार) अधिनियम ने नामांकन को बढ़ावा देने में मदद की है।
- यूनिसेफ का सहयोग: यूनिसेफ के सहयोग से कई क्षेत्रों में स्कूल ड्रॉपआउट बच्चों को फिर से नामांकित करने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं।
- स्कूल की गुणवत्ता में सुधार: सरकारें स्कूलों में शिक्षकों की संख्या बढ़ाने और आधारभूत संरचना में सुधार करने की दिशा में काम कर रही हैं।
- डिजिटल शिक्षा का विस्तार: डिजिटल शिक्षा प्लेटफॉर्म और ऑनलाइन लर्निंग ने शिक्षा तक पहुंच को आसान बनाया है, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में इसका प्रभाव सीमित है।
आगे का रास्ता
विशेषज्ञों का मानना है कि स्कूल से बाहर बच्चों की संख्या को कम करने के लिए सरकार और समाज को मिलकर काम करना होगा।
- सामाजिक जागरूकता: माता-पिता और समुदायों को शिक्षा के महत्व के बारे में जागरूक करना आवश्यक है।
- आर्थिक सहायता: गरीब परिवारों के बच्चों को स्कूल भेजने के लिए आर्थिक सहायता दी जानी चाहिए।
- बाल श्रम पर प्रतिबंध: सख्त कानून और निगरानी के माध्यम से बाल श्रम को रोका जाना चाहिए।
- समग्र शिक्षा नीति: प्रत्येक बच्चे के लिए शिक्षा को प्राथमिकता देने वाली नीति बनाई जानी चाहिए।
निष्कर्ष
11 लाख से अधिक बच्चों का स्कूल से बाहर होना भारत के शिक्षा तंत्र के लिए एक बड़ा चैलेंज है। यह न केवल बच्चों के भविष्य को प्रभावित करता है, बल्कि देश के समग्र विकास को भी बाधित करता है।
सरकार, समाज और परिवारों के संयुक्त प्रयास से ही इस समस्या का समाधान निकाला जा सकता है। शिक्षा का अधिकार हर बच्चे का मूल अधिकार है, और इसे सुनिश्चित करना हमारी सामूहिक जिम्मेदारी है।